Saturday, 29 September 2012

Bahaar aane taq....

देखा है मैंने दश्त में भी बहार आते हुए,
दर्द के मारे हुओं को करार पाते हुए।
एक मुझी पर क्यों न होता है मेहरबान ख़ुदा,
देखा तिफ्लों को भी दरिया के पार जाते हुए।

है कमी मुझमें या कि है कमी ज़माने में,
पेश आती है मुश्क़िलें क्यों घर बनाने में,
गूँजते हैँ यही सवाल इस वीराने में,
मुझसे दूर जाते हुए कुछ मेरे क़रीब आते हुए।

ऐ दोस्तों, मुझको न तुम दीवाना कहो,
ये सवाल आम है इसको तो न अंजाना कहो,
इसे बस मेरा नहीं, अपना भी अफ़साना कहो,
हंसोगे कब तक दिल में मुश्किलें छुपाते हुए।

मैंने देखा है दश्त में भी बहार आते हुए...

-'ख़याल'

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