मैं ज़िंदा हूँ मैं ज़िंदा हूँ,
अजनबी माहौल है पर,
है हवा जानी हुई.
ज़िंदगी जीने की हर एक
शर्त पहचानी हुई,
जिस्म अंजाना सा है या
रूह बेगानी हुई,
है यही एक कशमकश
बस हर पहर शाम-ओ-सहर,
मैं हुआ दीवाना या के
दुनिया दीवानी हुई
इन सवालो में उलझ कर
और हैरानी हुई,
रोज़ ही करता शुरू
एक नया सा सिलसिला,
रोज़ ही तिनके समेटू,
वो परिंदा हूँ,
मैं ज़िंदा हूँ मैं ज़िंदा हूँ...
-'ख़याल'
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