मैं,
मेरी ही एक कल्पना हूँ।
क़तरे परों से परवाज़ करता।
समंदर में बैठता, लहरों में उभरता।
हवाओं से बतियाता, आँधियों से लड़ता।
गिरता, संभलता हुआ सा एक काल्पनिक चरित्र
वास्तविकता से दूर, जीवन की आपाधापी से परे
जीवन की सिलवटों को
नये सिरे से सँवारता।
तुम मुझे, मुझमें ही न ढूँढ पाओगे......
-'Khayaal'
मेरी ही एक कल्पना हूँ।
क़तरे परों से परवाज़ करता।
समंदर में बैठता, लहरों में उभरता।
हवाओं से बतियाता, आँधियों से लड़ता।
गिरता, संभलता हुआ सा एक काल्पनिक चरित्र
वास्तविकता से दूर, जीवन की आपाधापी से परे
जीवन की सिलवटों को
नये सिरे से सँवारता।
तुम मुझे, मुझमें ही न ढूँढ पाओगे......
-'Khayaal'
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